रक्षाबन्धन-Happy Rachabandhan

 रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है 

श्रावण मास के अंतिम दिवस में हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को दर्शाता है इसमें बहन अपने भाई को राखी बांधकर अपनी रक्षा के लिए विश्वास पूर्ण वचनबद्ध करती है इसी के साथ हम आपको बताने का प्रयास कर रहे हैं कि यह पर्व कैसे शुरू हुआ/



क्रष्ण का द्रोपदी से बचन

   यह कहानी उस समय की है जब शिशुपाल बीच सभा में भगवान श्रीकृष्ण को गालियों पर गालियां दिए जा रहा था और भगवान वचनबद्ध थे की वह उसे सौ बार की गयी  गलतियों को माफ कर देंगे शीशुपाल अपने घमंड और अहंकार में चूर होकर भगवान श्री कृष्ण को बराबर निर्लज्ज बेईमान चोर कहे जा रहा था 

जब सौ गलतियां पूर्ण हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा अब आप की समय सीमा समाप्त हो चुकी है अभी वक्त है शांत हो जा किंतु शिशुपाल शांत ना हुआ तब श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सर धड़ से अलग कर दिया 

बताया जाता है सुदर्शन चक्र  से इतनी जल्दी इतनी तेज प्रहार किया कि उनकी उंगली कट गई और रक्त बहने लगा रक्त को देखकर पास खड़ी द्रोपदी भयभीत हो गई और भगवान श्री कृष्ण की उंगली अपने साड़ी के पल्लू को फाड़ कर बांध दी जिसे भगवान रक्षा बंधन समझकर यह वचनबद्ध हुए कि मैं आपकी सदैव रक्षा करूंगा |

 महाभारत के समय जब द्रोपदी का चीर हरण बीच सभा में दुसाशान करने लगा तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसी समय द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उनकी  लाज बचा कर अपने वचन का पालन किया |

   भारतीय इतिहास

 बताया जाता है कि मध्यकालीन मैं रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूं की दी हुई परंपरा है मध्यकालीन में मुस्लिम तथा राजपूतों के बीच महायुद्ध चल रहा था रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थी

 उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी तब हुमायूं उनकी राखी स्वीकार कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था शांडिल्य की पत्नी ने भी राजापुर को राखी भिजवा कर युद्ध विराम करवाया था|

आदिकाल  

मेरे भारत का पर्व 

वैसे तो श्रावण माह में भगवान शिव की महिमा को वर्णित किया गया है श्रावण लगते ही यह माह पूर्ण रूप से शिवमय हो जाता है वही श्रावण की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है हमारे धार्मिक ग्रंथों में रक्षाबंधन पर अनेक कहानियां वर्णित हैं जिसमें भगवान विष्णु तथा राजा बलि की कहानी आती है 

महाराज बलि भक्त प्रहलाद के पुत्र थे जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे वह भगवान देवाधिदेव महादेव के भी परम भक्त थे राजा बलि ने घोर तपस्या से कई सिद्धियां हासिल कर रखी थी एक बार महाराजा बलि ने 101 महायज्ञ करने का अनुष्ठान रखा जिसके कारण सभी देवताओं को अपने स्वर्ग के विषय पर चिंता होने लगी कि कहीं यज्ञ पूर्ण करके वह स्वर्ग का विजेता ना बन जाए 

उन्होंने इस समस्या को भगवान विष्णु के समक्ष प्रस्तुत किया तब भगवान विष्णु ने बावन का रूप रखकर राजा बलि से तीन पग भिक्षा मांगी भक्तों के साथ महा दानवीर भी कहे जाते थे

 तथा भिक्षा में मांगे तीन पग वचनबद्ध होकर भगवान विष्णु को दे दिया तब बावन भगवान अपने दो पग में तीनो लोक नाप ले और जैसे ही तीसरा पर नापने को बढ़ाया तो कही जगह ना मिली 

तत्पश्चात राजा बलि अपने बचन को पूर्ण करने के लिए अपना सर आगे रखकर भगवान से विनती की प्रभू अपना  यह पग मुझपर रखकरमुझे वचन से मुक्त करो बावन भगवान जैसे ही अपना तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा वह तुरंत ही पाताल लोक पहुंच गए 

तब राजा बलि ने पाताल लोक में भगवान विष्णु से यह वर मांगा की हम प्रातः आपका प्रतिदिन दर्शन कर सकूं भगवान ने तथास्तु कहकर प्रतिदिन सुबह दर्शन देने लगे इस बात को जानकर लक्ष्मी जी बहुत परेशान हूं और भगवान शिव के पास पहुंची

 तथा अपनी समस्या सुनाई भगवान शिव ने राजा बलि को रक्षक वर से बांधने के लिए कहा तब लक्ष्मी जी ने वासुकी को साथ. लेकर पाताल लोक गई जहाँ राजा  बलि को रक्षासूत बाँधकर अपने पति को वापस माँग. लिया 


हमारे वेद पुराण हर पर्व को धूमधाम से मनाने वाले कारणों का प्रमाण रखते हैं .. 
आप सभी को रक्षाबन्धन की ढेरों शुभकामनाएं
धन्यवाद🙏💕
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 एक बार फिर आप सभी को रक्षाबन्धन की ढेर सारी शुभकामनाएँ _🌹😊👌👏🙌🌼🌸💕
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1 टिप्पणियाँ
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