शरद पूर्णिमा का रहस्य
आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है! शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत बरसाता है इसलिए इस रात को खुले आसमान के नीचे एक बर्तन में खुला खीर रख दी जाती है और सुबह उसे प्रसाद के रूप में सब को वितरित किया जाता है दिलचस्प बात यह है की आज की रात को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास होता है
शास्त्रों के अनुसार आज के दिन कथा यज्ञ अनुष्ठान किया जाए तो यह सफल होता है मान्यता है कि आज रात को भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों के साथ महारास रचा था । शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी माता का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था ।आज की रात माता लक्ष्मी जी के साथ-साथ भगवान विष्णु का ध्यान करके पूजा करनी चाहिए। जिसे से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है ।
आज के दिन प्रातः काल स्नान करके भगवान विष्णु आराध्य को सुंदर वस्त्रों से सुशोभित करके आवाहन, आसन ,आचमन, वस्त्र , अक्षत, पुष्प , धूप,दीप ,नवग्रह तांबूल, सुपारी,दक्षिणा आदि से इनका पूजन करना चाहिए रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी अथवा चीनी डालकर आज रात्रि के समय भगवान को भोग लगाकर ध्यान बंदन करना चाहिए ।
अर्ध रात्रि में चंद्रमा की चांदनी को देखकर खुले बर्तन में खीर रख देना चाहिए फिर शरद पूर्णिमा की कथा सुनना चाहिए तथा अक्षत जल आदि अर्पण करना चाहिए। सुबह खीर को प्रसाद के रूप में वितरण करना चाहिए।
कथा किसकी होती है
शरद पूर्णिमा की कथा मैं भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी जी की महिमा का वर्णन किया जाता है कि कैसे माता लक्ष्मी की कृपा से दोनों बहनों को संतान प्राप्ति व कलंक से छुटकारा मिला तथा इसके पूजन से क्या-क्या लाभ मिले ।
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आप सभी को शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं भगवान विष्णु आपके मनोरथ को सफल बनाएं
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यह थी आज की शरद पूर्णिमा पूजा विधि
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