ऐसा माना जाता है कि चांदनी चौक लाल किले के सामने दिल्ली में जब मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए बहुत लोग इकठ्ठा हुए और बहुत शांत बैठे रहे . .
लोंगो का जमघट , सबकी सांसे अटकी हुए सबके मन में एक उम्मीद अटकी हुई कि शर्त के मुताबिक अगर गुरू तेगबहादुर जी स्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा वो भी बिना किसी जोर जबरजस्ती के ! यह समय औरंगजेब की इज्जत का सवाल बना हुआ था ।
समस्त हिन्दू समाज यहीं सोच में डूबा हुआ था कि आखिर अब क्या होगा ? लेकिन गुरू जी अडिग बैठे हुए थे उन्हें पता था कि किसी का धर्म खतरे में है किसी धर्म का आस्तित्व खतरे में है वहीं दूसरी तरफ धर्म का सबकुछ दांव पे लगा हुआ था . . बस एक हां अथवा ना पर सबकुछ निर्भर था , , औरंगजेब खुद चलकर आया था . . लाल किले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के काजी के पास . .. वहीं मस्जिद जहां कुरान पढ्कर यातना देने का फतवा निकाला जाता था वो मस्जिद जो आज भी मौजूद है.. !
औरंगजेब की तरफ से गुरू तेगबहादुर जी को अनेका अनेक तरह की यातनाएं दी गई स्लाम कबूल करने को प्रताड़ित किया गया किन्तु गुरु तेगबहादुर जी अपने हौसले और विश्वास पर अडिग रहे . .. जब अन्तिम क्षण जल्लाद की तलवार चली तो गुरु तेगबहादुर जी का तेज से भरा प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो गया ।
24 नवम्बर बना इतिहास का दिन
ये इतिहास का ऐसा मोड़ था जो पूरे भारत का भविष्य बदलने से रोक दिया . . ये दिन वो दिन था जो हिन्दू के हिन्दू रह जाने का दिन बना सिर्फ एक हां से हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान नहीं रह जाता ।
गुरु तेगबहादुर जी हिन्द की चादर बनकर सनातन सभ्यता और जीवन दर्शन की रक्षा की उनका यह अनमोल साहस भारतवर्ष कभी नहीं भूल सकता . .
ये इतिहास के वे पृष्ठ है जो कभी पढाये नही ं जाते जो हर भारतीय को जानना चाहिए
जय हिन्द
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