सनातन धर्म के संस्थापक श्रीमदाद्घ जगदगुरू
सनातन धर्म के उन्नायक श्रीमदाद्घ जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म लगभग 480 ई०पू० केरल के एक छोटे काल्टी नामक गांव में हुआ था । ऐसा माना जाता है कि ये अपनी एक वर्ष की आयु में अपनी मातृ भाषा में बात करने लगे थे , तथा तीन वर्ष की आयु में सभी वेद पुराणों का ज्ञान ग्रहण कर लिया था सात वर्ष की आयु में शंकर सन्यास धारण कर ब्रम्ह ज्ञान के लिए सच्चे गुरू की खोज में निकल पड़े थे ।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के पावन तट पर अमरकांत गुरू से अव्दैत विदा का ज्ञान प्राप्त किया । अपने गुरू की अज्ञा से शंकर काशी आये और मणिकर्णिका घाट पर भगवान वेदव्यास द्वारा रचित ब्रम्हा सूत्र पर भाष्य की रचना की ।
श्रीमदाद्घ जगदगुरू शंकराचार्य मात्र 12 वर्ष की आयु में उत्तरांचल की हिमालय की कुन्द्राओं में बद्रिकाआश्रम आये. बद्रीनाथ में शंकर ने श्रीमद्भागवत , गीता तथा दस उपनिषदों पर अपनी भाष्य पर रचना पूर्ण की!
आज हम जिस तरह भारत को देख पा रहे हैं उसके स्वरूप के शिल्पी आद्दगुरू शंकराचार्य ही रहे क्योंकी भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य शंकराचार्य ने किया है इन्होंने भारत के प्रमुख चार धाम ( बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वर, द्वारिका) में धर्म का प्रचार करके , धर्म प्रचार हेतु मठों की स्थापना की सभी मठों को एक वेद तथा एकमहावाक्य सौंपा ।
* मठों के महा-वाक्यों एवं स्थापना वर्ष का विवरण*
1 ज्योर्तिमठ -बद्रीनाथ (486ई० पू०) अयंआत्माब्रम्ह
अथर्ववेद
2 गोवर्धन पीठ -जगन्नाथ पुरी (485 ई०पू०)
प्रज्ञानं ब्रम्ह ऋग्वेद
3 शारदा पीठ -द्वारिकापुरी (491ई० पू०)
तत् त्वम असि सामवेद
4 श्रगेरी-कर्नाटक (487 ई०पू०) अहंब्रृम्हास्मि यजुर्वेद। इन चार मठों के अतिरिक्त शंकर ने तमिलनाडु के कामाक्षी देवी के काम कोठिपीठम की स्थापना की तथा अन्य मठों की सहायता जगत कल्याण के लिए की ।
आद्दगुरू शंकराचार्य ज्ञान और शाश्त्र । को महत्व देते थे किन्तु शक्ति को गौड़ समझते थे..
* भारतीय संत व गुरु शिष्य परंपरा के जनक गुरु शंकराचार्य*
भारतीय संत पराक्रम में दशनामी संप्रदाय बहुत महत्वपूर्ण है जिन्हें अखाड़ों के नाम से जाना जाता है जो उज्जैन, नासिक, हरिद्वार,प्रयागराज में महाकुम्भ लगने का अद्वितीय हिस्सा है
तभी सन्त सन्यास के बाद अपने आगे पुरी, गिरी, अरण्य, पर्वत, भारती, सागर लगाते । हिन्दू धर्म में आद्दशंकर द्वारा स्थापित मठों के द्वारा ही संत परंपरा व शिष्य परंपरा का निर्वाहन होता है इन मठों के अंतर्गत आने वाले 13 अखाड़े हैं इन्हीं अखाड़ों के तहत सन्यास लिया जा सकता है।
अंत समय में अपनी 32 वर्ष की अवस्था में जगतगुरु शंकराचार्य केदारनाथ चले गए और एक वट वृक्ष के नीचे शंकर योग साधना में योग शक्ति के द्वारा ब्रह्मलीन हो गए।
जगतगुरु शंकराचार्य अपने जीवन में अनेक कार्य किये अनेक ग्रन्थों, स्रोत, व भाष्यों की रचना कर भारत की गुप्त चेतना को जाग्रत कर सनातन धर्म की पुनर्स्थापना कर उसे जीवित करने का कार्य किया आज की मठ और अखाड़ा परम्परा आद्दगुरू शंकराचार्य कीही देन है !
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