जन समर्थन द कश्मीर फाइल्स The Kashmir files


मार्च 2022 की बहु चर्चित फिल्म द कश्मीर फाइल्स  आपने जरूर देखी होगी या सुनी होगी आज उशी के बारे में थोडा हिंदी टाइटल में  थोडा सा अलग जानने की कोसिस करते है तो आईये किसने क्या लिखा में चलते है |

द कश्मीर 1990 --

साथियों द कश्मीर की फिल्म स्टोरी में हिन्दुओ के साथ होने वाले अन्याय के बारे में बिलकुल सटीक सटीक दिखाया गया है 19 जनवरी 1990 वो तारीख है जब जवाहर तर्नल के उस पार लाखो लोगो का पलायन का दर्द झेलना पड़ा और न चाहते हुए भी उन्हें उस पार से उस पार आना पड़ा जवाहर टर्नल वो रास्ता है जो कश्मीर  से लेकर जम्मू तक के सफ़र को जोड़ता है लेकिन ये रास्ता 19 जनवरी 1990 को एक सरहद से कम नही था इस रस्ते से कश्मीर से लाखो पंडित अपनी जान बचाने के लिए कश्मीर से जम्मू के सर्नार्थी बनने में विवश हो गये |

अब आपके मन में यह जरुर आता होगा की उस रात आखिर ऐसा क्या क्या हुआ की कश्मीर के पंडितो को रातो रात घर बार छोड़ना पड़ा तो दोस्तों हाल ही में 11 मार्च 2022 को रिलीज हुई फिल्म The Kashmir Files  ने उस सच्चाई को इतना अच्छे से दिखाया है जिसे देख कर हर भारत वासी इमोशनल हो जा रहा है बड़े एक्टर ,बड़े बड़े नेता इस फिल्म को देखकर भावुक हो जा रहे है तथा तारीफ करते है और क्यों न हो ये फिल्म ,फिल्म नही बल्कि कश्मीरी हिन्दुओ पर अत्याचार होने वाली घटना को सटीक से दिखाया है|

 दिखाया है की कश्मीर में ऐसा क्या हुआ जिसके कारन कश्मीरी पंडितो को अपनी जान ,धर्म ,बचने के लिए अपनी पूरी मेहनत से कमाई गयी चल अचल सम्पति घर बार गंवाना पडा इस फिल्म के रिलीज होते ही कश्मीरी पंडितो के साथ सभी दर्शको के दिल में भावुकता उत्पन्न हो गयी जिससे ये फिल्म कई दिनों से हॉउस फुल है |

सौरभ


अगर आपने अभी तक यह फिल्म नही देखी है तो कोई बात नही हम आपको उस कहानी को बताने का प्रयास करते है किन्तु आपसे निवेदन है की एक बार ये फिल्म जरूर देंखे The Kashmir Files  को देखने के लिए नीचे साईट को टच  करे |

कश्मीरी पंडितो की भयावह कहानी -

कश्मीरी घाटी की ये कहानी शुरू होती है राजनीती से और इस कहानी का पहला पडाव शुरू होता है फारुक अब्दुल्ला से जिन्होंने साल 1982 में अपने पिता सेख अब्दुल के बाद मुख्य मंत्री पद की शपथ ली इसके बाद साल आता है 1983 जब फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ इंदिरा गाँधी चुनाव में उतरी और विजय प्राप्त कर ली |
नेशनल कान्फ्रेंस के बाद वर्ष 1984 में लोकसभा के चुनाव में फारुक अब्दुल्ला तथा इंदिरा गाँधी के बीच कड़वाहट और बढ़ गयी|

इसी कड़वाहट का नतीजा 1984 में कश्मीर का सत्ता परिवर्तन आपको बतादे की फारुक अब्दुल्ला के जीजा गुलाम मो ० शाह ने नेशनल कन्फ्रेंक्स के 13 विधायक तथा कांग्रेस के 26 विधायक जोड़कर लोकसभा का चुनाव जीत कर फारुक अब्दुल्ला को सत्ता से निकाल दिया और अपनी सरकार बनाई इस सरकार का जनता ने खुलकर विरोध किया साथ ही धरना प्रदर्शन भी दिया |

कश्मीरी पंडितो पर हिंसा का पहला मामला सन 1986 में आया जब अयोध्या में राम मंदिर का ताला खोला गया इसके बाद ही अनन्त माला में कई कश्मीरी पंडितो पर हमला किया गया ये 1986 का पहला ट्रेलर था |

नक्शा कश्मीर

इस घटना को देखकर पहली बार अब्दुल्ला सरकार को हटाकर राष्ट्रपति सासन लागु किया गया |सन 1988 आते आते कट्टरवाद  फ़ैल गया जगह जगह विरोध प्रदर्शन किया जाने लगा तभी अलगाव वादियों ने एक चाल चली चुनाव के पीछे नारा दिया जाने लगे इस्लाम खतरे में है साथ ही साथ आतंकवादियों के निशाने पर कश्मीर के सिनेमा घर ,बैंक ,बड़े बड़े शहर ,ब्यूटी पार्लर आ गये वन्ही दूसरी तरफ जे० के० लव०  के लोगो ने कश्मीर छोडो का नारा लगाना शुरू कर दिया और तभी से सुरु हुआ हत्याओ का सिलसिला |

कश्मीरी पंडित की पहली हत्या -

साल 1989 में सबसे पहले कश्मीर के पंडित टीकालाल की हत्या कर दी गयी ये भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष तथा साथ साथ सासकीय अधिवक्ता भी थे इसके बाद 4 नवम्बर 1989 में  जे० के० लव० के मकबूल भट्ट को फान्सी की सजा सुनाने वाले न्यायमूर्ति नीलकांत को भी मौत के घात उतार दिया गया इन हत्याओ की जिम्मेदारी जे० के०लव० ली थी हर जगह उपद्रव दिखाई देता था|

मंदिरों में मस्जिदों में गलियों में बस एक ही नारा गुंजता था रालिब ,ग़ालिब ,या यालिब  इसका मतलब होता है हमारे साथ मिल जाओ या मर या फिर भाग जाओ आलम ये था की कश्मीरी हिन्दुओ का जीना दुश्वार था बड़े बड़े गृह मंत्री की बेटी का अपहरण करके जबरन ले बलात्कार करते थे और जिन्दा जला देते थे जे० के० लव० के आतंकी उस वक्त सरकारी कर्मचारी को भी निशाना बनाते थे |

19 जनवरी 1990--

19 जनवरी  की रात कयामत की रात थी ये रात कश्मीरी पंडितो को वो दुःख मिले जो आज भी सुनकर ,देखकर रूह काँप जाती है हिन्दुओ के घर को जलाया जा रहा था उन्हें मारा जा रहा था हिन्दुओ की महिलाओ ,बेटियों को आगवा कर ले जाते थे बस यंही वजह थी कश्मीर के पंडितो को कश्मीर छोड़कर दर दर भटकना पड़ा ये कोई प्राक्रतिक आपदा नही थी यह आतंकियों के जबरन उपद्रव करके कब्ज़ा करने की रात थी इस रात में हजार दो हजार नही बल्कि 2 से ढाई लाख पंडितो को घर छोड़ना पडा था 19 जनवरी 1950 की पलायन वाली रात को नरसंहारी रात मानी जाती है इस नरसंहारी को रात में कश्मीरी पंडितो की आबादी घट गयी इतना कत्ले आम हुआ था |

द कश्मीरी फाइल्स -

यंही वजह है की हाल ही रिलीज हुई विवेक अग्निहोत्री  के निर्देशन में यह फिल्म सभी रिकॉर्ड तोडती चली जा रही है साथ ही भारत के प्रधानमंत्री ने इस फिल्म को देखकर प्रसंशा की है और सभी टैक्स फ्री कर दिया है |

------------धन्यवाद --------------
आप सब से निवेदन है की एक बार इस फिल्म को जरुर देखे --

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस सुझाव से हमें प्रसन्नता हुई है आपके द्वारा हमें मिला फीडबैक हमारे लिए सौभाग्य की बात है....
आप हमारी सभी पोस्ट को अवश्य देखें अपने दोस्तों को भी भेजें...