अभिमन्यु कौन थे?
अभिमन्यु वह महारथी थे जिनके पिता गांडीवधारी अर्जुन थे और जिनके गुरु स्वयं सुदर्शन चक्र धारी श्री कृष्ण थे अभिमन्यु वो थे जिससे स्वयं भीष्म पितामह ने हार स्वीकार कर ली थी अभिमन्यु ने 10 आए थे महारथियों को मार गिराया था जिन्हें मौत छूने से भी डरती थी|
अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण को मार दिया था अभिमन्यु ने कर्ण के छोटे पुत्र को,अश्वत्थामा के बेटे को,शाल्व के छोटे भाई को, शाल्व के पुत्र रूक्मरथ को, दृघलोचन को, कुण्डवेधी को, सुषेण को, कृपा को इत्यादि महारथियों को परास्त कर दिया था ऐसे थे महाबली अभिमन्यु|
चक्रव्यूह क्या होता है?
चक्रव्यूह एक ऐसा युद्ध तंत्र होता है जिससे बड़ी से बड़ी सेना
बड़े से बड़े महारथी धरा शाही हो जाते थे इसे एक तरह से घूर्णन मृत्यु चक्र कहा जाता था जिसे भेदना असंभव होता था कहते हैं इसे तोड़ने का रहस्य केवल द्वापर युग में 7 लोग जानते थे श्री कृष्ण, अर्जुन,भीष्म,द्रोणाचार्य,कर्ण, अश्वत्थामा, प्रद्युम्न अभिमन्यु तो केवल प्रवेश करना जानता था किंतु बाहर निकलना नहीं जानता था |
महाभारत का चक्रव्यूह
चक्रव्यूह का निर्माण होते ही सभी सैनिक चक्र की भांति ऐसे घूमते रहते थे जैसे पृथ्वी घूमती हो इसीलिए चक्रव्यूह का प्रवेश द्वार बदलता रहता था और दुश्मन भ्रमित हो जाता था यह सभी सैनिक संगीत अथवा शंख की आवाज के अनुसार चलते थे चक्रव्यू के एक सैनिक पर जैसे ही आक्रमण होता था कि तुरंत उसकी जगह दूसरा ताकतवर सैनिक आ जाता था|
माना जाता है कि जब कोई भी चक्रव्यूह में प्रवेश करता था तो उसे इतना मानसिक रूप से तोड़ दिया जाता था कि उसके हजारों सैनिक पलक झपकते ही मार दे जाते थे चक्रव्यूह एक ऐसा काल कुंड था जिसमें अभिमन्यु को छल से मारा गया था|
चक्रव्यूह में अभिमन्यु कैसे फंस गए ?
गुरु द्रोणाचार्य द्वारा रचित चक्रव्यूह इतनी कुटिलता से बनाया गया था कि उसकी खबर पांडवों को कानों कान तक नहीं पहुंची थी युद्ध आरंभ होते ही अर्जुन को शुसर्वा अपने युद्ध जाल से रणभूमि से इतनी दूर लिए चला जाता है जिससे अर्जुन का पुनः रणभूमि में पहुंच पाना मुश्किल हो गया था|
अर्जुन का रथ जब रणभूमि से दूर चला गया तो गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना कर दी क्योंकि उन्हें पता था इस चक्रव्यूह को भेद पाना अर्जुन के अतिरिक्त इन पांडवों में किसी को नहीं आता है तब वीर अभिमन्यु ने इस चक्रव्यूह को भेदने का प्रण किया तथा युद्ध नीति बनाई अभिमन्यु ने कहा मैं जब इस चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करूंगा तो सभी सेना सहित महारथी अंदर प्रवेश कर जाना इससे चक्रव्यूह से बाहर निकलना आसान हो जायेगा|
अभिमन्यु ने जैसे ही चक्रव्यूह को भेद कर अंदर प्रवेश किया कि जयद्रथ ने सभी पांडवों को अपने शिव वरदान से प्रवेश द्वार पर ही रोक लिया अब अंदर जाने का मार्ग बंद हो गया था और अभिमन्यु अकेला पड़ गया|चक्रव्यू के अंदर पहले से मौजूद सभी महारथी अभिमन्यु को घेर लिया और युद्ध प्रारंभ कर दिया किंतु वीर अभिमन्यु अकेला एक-एक कर सभी महारथियों को परास्त कर दिया|
जब एक एक कर अश्वत्थामा,दुर्योधन,द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य ,दुशासन, साल्वकुमार , शकुनी जैसे महारथियों को प्राप्त कर दिया तो दुर्योधन आग बबूला हो गया और कायरों की तरह चिल्लाया मुझे इसका शव चाहिए चाहे कुछ भी करना पड़े और दुर्योधन ने वीर अभिमन्यु के पैर पर तीर मार दिया|
दुर्योधन के आक्रमण करते ही शकुनि ने भी बाण सीने पर मार दिया और धीरे-धीरे सभी कायरों ने वीर अभिमन्यु के ऊपर आक्रमण कर दिया लेकिन अभिमन्यु बराबर युद्ध करता रहा और जब अभिमन्यु के पास अस्त्र-शस्त्र समाप्त हो गए तो अभिमन्यु ने कहा एक बार मुझे अस्त्र-शस्त्र लाने दो फिर युद्ध करते हैं|
वीर अभिमन्यु के अस्त्र शस्त्र समाप्त होने पर दुर्योधन जोर से हंसा और चारों ओर से घेर कर जब मारने लगा तो अभिमन्यु ने रथ का पहिया निकालकर सब को परास्त कर दिया कितने में दुशासन ने चपलता से पीछे से आकर पीठ में तलवार भोक दी जिससे अभिमन्यु जमीन पर गिर गया और वीरगति को प्राप्त हो गया|
अभिमन्यु के वध का जिम्मेवार कौन था
अभिमन्यु के वध का जिम्मेवार तो दुर्योधन था किन्तु जयद्रथ अगर भीम, युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, को ना रोकता तो स्वयं गुरु द्रोणाचार्य ,कर्ण, भी अभिमन्यु का कुछ ना बिगाड़ पाते इसलिए इस युद्ध परिणाम का जिम्मेवार जयद्रथ था जिसे अर्जुन के हाथों मरना पड़ा था|
तो साथियों महाभारत के इस अध्याय को अपने दिलो दिमाग से पढ़ने व देखने से करूणामयी विचार उत्पन्न होते हैं और हमें वीर अभिमन्यु पर गर्व होता है क्यों कि ऐसे वीर पुरुष कभी कभी जन्म लेते हैं|
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