एक जुनून व मेहनत से मिलने वाली सफलता के प्रतीक दशरथ मांझी उर्फ माउंटेन मैन को आज हर कोई जानता पहचानता है कुछ ही समय पहले आई फिल्म दशरथ मांझी दर्शकों के दिलों में एक अलग ही पहचान बना डाली आज भी जब कोई मुसीबत सामने आती है और उस मुसीबत से लड़ने के लिए लोग दशरथ मांझी की सफलता की कहानी सुना कर मेहनत करने के लिए प्रेरित करते हैं तो आज हम जानेंगे दशरथ मांझी के बारे में...
दशरथ मांझी के जीवन का आरंभ
दशरथ मांझी और माउंटेन मैन के नाम से मशहूर शख्स का जन्म 14 जनवरी सन 1934 में बिहार राज्य के गहलौर में हुआ था यह राज्य भारत में है भारत उस समय अंग्रेजों का गुलाम रहता था अंग्रेजों ने भारत के हर प्राणी को गुलाम बनाकर रखा हुआ था दशरथ मांझी के पिता बहुत ही गरीब थे वह अपने परिवार को चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करते और पहाड़ व खेतों में चूहे पकड़ते थे दशरथ के गांव में कोई अस्पताल दुकान नहीं थी दशरथ का विवाह बचपन में ही हो गया था दशरथ मांझी के पिता मेहनत मजदूरी करते तब भोजन का प्रबंध हो पाता कुछ समय पश्चात दशरथ मांझी के पिता जमीदार से कर ले कर अपने परिवार का खर्चा उठाया राशन की व्यवस्था की जमीदार को कर्जा समय पर चुकता न कर पाने पर जमीदार ने दशरथ के पिता को प्रताड़ित किया
और अपने घर पर नौकरी करने को विवश किया तब दशरथ के पिता ने अपने परिवार के जीवन यापन की भीख मांगी तब जमीदार ने दशरथ को अपने यहां मुफ्त में नौकरी करने को कहा दशरथ मांझी के पिता ने अपने पुत्र को जमीदार के पास तो दिया कि तू दशरथ मांझी जमीदार के घर पर नौकरी न करके रात को अंधेरे में निकलकर गांव छोड़ दिया और मुंबई भाग निकला मुंबई में मेहनत मजदूरी करके अच्छे पैसे कमाने लगा
लगभग 7 वर्ष बाद जब दशरथ मांझी को अपने घर की याद सताने लगी तो दशरथ मांझी अपने घर आने के लिए शहर से निकल पड़ा और गांव की तरफ चल पड़ा
दशरथ मांझी का प्रेम प्रसंग
दशरथ मांझी को जब गांव में कोई बदलाव न दिखा तो उसने अपनी पत्नी को मायके से वापस लाकर घर परिवार बसाना चाहा गांव के सभी दोस्तों वह बुजुर्गों से मिलकर दशरथ मांझी बहुत खुश हुआ और अपने पिता के साथ अपनी ससुराल में पत्नी को विदा कराने पहुंचा|
बाल्यावस्था में विवाह
दशरथ मांझी के गांव व समाज में बचपन में ही विवाह कर दिया जाता था जिस कारण दशरथ अपनी पत्नी को ठीक से पहचानता भी नहीं था दशरथ के पिता जब दशरथ मांझी की ससुराल पहुंचे तो दशरथ की पत्नी के पिता ने विदा करने से मना कर दिया दशरथ मांझी ने भी विदा करने को कहा तो दशरथ के ससुर ने उन्हें दौड़ा लिया और गांव से भगा दिया दशरथ वापस अपने गांव आकर मेहनत करने लगा, और दूसरा विवाह करने को राजी हो गया लेकिन गांव के पास एक बहुत बड़ा मेला लगा जहां पर जाकर दशरथ मांझी इधर उधर घूमने लगा अचानक उसकी नजर अपनी पत्नी पर पड़ी जिसे वह पहचानता तक नहीं था और वह उसे प्रेम करने लगा
दशरथ अपनी पत्नी के पास जाकर पहुंचा तुम्हारा नाम क्या है तो उसकी पत्नी बोली मेरा नाम फाल्गुनी देवी है दशरथ मांझी धीरे-धीरे बातें शुरू की तथा मिलने लगा और धीरे-धीरे फाल्गुनी देवी को भी दशरथ से प्यार हो गया दोनों ने यह निश्चित किया कि वह भाग कर शादी करेगा जब यह बात दशरथ के पिताजी को पता चली तो दशरथ के पिता ने उस लड़की को देखकर कहा यह तुम्हारी ही पत्नी है इसका विवाह बचपन में तुम्हारे साथ हुआ था अब दशरथ मांझी अपनी पत्नी को भगा कर ले आया और दूसरी शादी कर ली जिसके बाद दशरथ के ससुराल जनी बहुत नाराज हुए, लेकिन दशरथ मांझी अपनी पत्नी से विवाह करके घर परिवार चलाने लगा
दशरथ मांझी को गांव में दिक्कतें
दशरथ मांझी अपने परिवार के साथ मिलजुल कर रहने लगा और उसे बहुत आनंद मिलता था किंतु उन्हें गांव में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता था जैसे गांव में अस्पताल ना होना गांव में वाहन न मिलना गांव में जमीदारों की गुलामी करना व अपने गांव से दूसरे गांव पहुंचने के लिए बहुत बड़े पहाड़ का चक्कर काटना और सबसे बड़ी दिक्कत थी छुआछूत क्योंकि गाहलौर में छुआछूत का बहुत बड़ा तूफान था जिसके कारण दशरथ मांझी को सुबह सुबह घूमने का भी नुकसान होता था जमीदार और ऊंचे लोग उन्हें प्रताड़ित करते थे |
दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़े जाने का राज
दशरथ मांझी अपने प्यार को पाकर अपनी पत्नी को भगाकर पुनर्विवाह करके जीवन यापन करने लगा कुछ समय पश्चात दशरथ मांझी को अपने गांव मैं काम मिलना बंद हो गया जिसे दशरथ मांझी पहाड़ के उस पार काम करने जाना पड़ा पहाड़ के दूसरी तरफ उसे अच्छा काम मिल गया वह दिन भर काम करता और देर शाम घर लौट आता दशरथ मांझी अपनी पत्नी से जितना प्रेम करता था उतना ही प्रेम दशरथ की पत्नी फाल्गुनी भी करती थी दशरथ मांझी की पत्नी अपने पति को दोपहर का भोजन देने पहाड़ पर चढ़कर उस पार जाती थी और भोजन दे कर पुनः घर वापस आती थी
दशरथ माझी की पत्नी का निधन
दशरथ मांझी की पत्नी पहाड़ चढ़कर भोजन देने जाती थी और घर वापस उसी पहाड़ से उतर कर आती थी किंतु 1960 में जब दशरथ मांझी के पत्नी पहाड़ चढ़कर भोजन देने गई तो उसका पैर फिसल गया और पहाड़ से नीचे गिर गई दर्द से कराहते हुए दशरथ मांझी की पत्नी ने अपने पति को आवाज लगाई दशरथ को जब इस बात की जानकारी हुई तो दशरथ दौड़ते हुए पहाड़ से नीचे आया और जोर जोर से रोने लगा क्योंकि दशरथ की पत्नी उस समय गर्भवती थी और दर्द से कराह रही थी उसके सर में बहुत चोट आई थी और खून बह रहा था दशरथ अपनी पत्नी को उठाकर मदद की गुहार करता रहा किंतु कोई उसकी पत्नी को बचा नहीं पाया और अंत में उसका निधन हो गया
दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की चिता को जलाकर पहाड़ तोड़ने की कसम खाई और एक चीनी और एक हथौड़े को लेकर घर से निकल पड़ा अपनी पत्नी के निधन का सदमा उसे पागल बनने पर मजबूर कर दिया पागल ऐसा पागलपन जो इतिहास रचने पर विवश हो गया
दशरथ को पहाड़ तोड़ने में क्या-क्या समस्याएं आई
एक छेनी और एक हथौड़े को लेकर 25 फीट ऊंचे और 30 फीट चौड़े 360 मीटर लम्बे पहाड़ को तोड़ने का ख्वाब सोचने पर ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं लेकिन दशरथ माझी ने अपनी कसम को पूरा करने का निर्णय ले लिया था |
और उसे पूरा करने के लिए कयी कठिनाइयों का सामना किया दशरथ माॅझी अपने विश्वास और दूसरे के द्वारा निकल रही हंसी ने अपनी जिद को पूरा करने के लिए गर्मी, बरसात, सर्दी सबकुछ भूल गया |
बताया जाता है कि एक बार पूरे राज्य में अकाल सूखा पड़ पड़ गया जिसके बाद दशरथ माझी के गाँव वाले गाँव छोड़कर दूर चले गए लेकिन दशरथ माझी को उस अकाल सूखा का कोई असर नहीं पड़ा...
दशरथ माझी दिन रात एक ही जिद लिए खड़ा रहा जबतक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं भयंकर आंधी तूफान और गर्मी में पहाड़ पर काम करते-करते गंदा पानी पी लिया और पेड़ों के पत्ते खाए दशरथ मांझी अपने बच्चों की बिना प्रवाह किए दिन रात काम करता रहा जिससे गांव वाले उसे पागल समझ कर रिश्ता नाता तोड़ दिया
गांव के लोग उसे पागल सनकी बुलाते थे 1 साल तक गांव के सभी लोग बाहर जाकर जब पूंजी बनाकर वापस लौटे तो देखा दशरथ मांझी अभी भी पहाड़ तोड़ रहा है तो गांव के लोगों ने दशरथ मांझी का नाम पहाड़ तोड़ू रखकर चिढ़ाने लगे..
दशरथ मांझी को सरकार द्वारा मदद
पहाड़ तोड़ते तोड़ते के दशरथ थक जाता तो पहाड़ पर ही सो जाता था कहते हैं 1 दिन दशरथ को सपने में फगुनिया कहती है कुछ सरकार से मदद मांग लो चुनाव सर पर है इस बात को दशरथ मांझी स्वीकार करके आपातकाल के समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषण सुनने रैली में जाता है जहां पर उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी जी से होती है इंदिरा गांधी दशरथ मांझी को सांत्वना देते हैं कि सरकार उनकी मदद अवश्य करेगी
सरकार की मदद दशरथ को मिलेगी यह बात सुनकर जमीदार दशरथ के साथ चारसौबीसी करके मीठी मीठी बातों में फसांता है और पच्चीस लाख का चूना लगा देता है |
दशरथ मांझी थक हार कर बिहार वापस लौटता है और पहाड़ तोड़ने का कार्य पुणे प्रारंभ कर देता है कहते हैं पहाड़ तोड़ने के जुर्म में वह जेल भी जा चुका था लेकिन एक जिद एक जुनून ने उसे पागल बना कर रखा था जिसका ख्वाब था पहाड़ तोड़ना.
दशरथ मांझी को अपने कार्य में सफलता
समय बीतता गया और अंततः दशरथ मांझी को अपने कार्य में सफलता मिलती है यह सफलता लगभग 25 वर्ष बाद मिलती हैं कड़ी मेहनत से 360 फुट लंबे 30 मीटर चौड़े और 25 फीट ऊंचे पहाड़ को तोड़ कर एक आसान रास्ता बना दिया
बताया जाता है इस सड़क को आज भी लोग दशरथ मांझी के नाम से जानते हैं दशरथ की मेहनत सन 1982 में रंग लाई और 55 से 15 किलोमीटर का सफर कम करती है एक कड़ी मेहनत दशरथ मांझी सड़क.. |
दशरथ मांझी को पद्मश्री सम्मान
कड़ी मेहनत से तभी गांव व क्षेत्र वासी बहुत प्रसन्न होते हैं जिसके बाद सन 2006 में सरकार द्वारा दशरथ मांझी को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया जाता है.|
दशरथ मांझी का निधन
बताया जाता है दशरथ मांझी को मुंह का कैंसर हो जाता है यह कैंसर बहुत खतरनाक माना जाता है और 17 अगस्त 2007 में दशरथ मांझी द माउंटेन मैन का निधन हो जाता है दशरथ मांझी के निधन पश्चात बिहार राज्य में इस दिन राजकीय शोक मनाया गया दशरथ मांझी ने अपनी जीवनी पर फिल्म बनाकर सभी को हार मानने के बजाय प्रयास करने की शिक्षा देने के लिए अनुमति दी यह फिल्म सुपर डुपर रही है|
प्रश्नोत्तरी
*दशरथ माझी का जन्म किस परिवार में और कब होता है?
दशरथ माझी का जन्म बिहार राज्य में 14 जनवरी 1934 को माझी परिवार में हुआ था
*दशरथ माझी को पहाड़ तोड़कर सड़क बनाने में कितना समय लगा..?
दशरथ मांझी को पहाड़ तोड़ने में 25 वर्ष लगे थे पहाड़ तोड़कर उन्होंने बहुत लंबे सफर को कम कर दिया
*दशरथ माझी की पत्नी का क्या नाम था?
दशरथ माझी की पत्नी का नाम फाल्गुनी देवी था दशरथ उर्फ माउंटेन मैंन उन्हें प्यार से फगुनिया कहते थे.. |
*दशरथ माझी की पत्नी को उसका पिता ससुराल में क्यों विदा नहीं करता था?
दशरथ मांझी की पत्नी को उसका पिता इसलिए नहीं भेजता था क्योंकि दशरथ कमाता नहीं था और ना ही जमीदार के यहां मजदूरी करता था लेकिन जब दशरथ को अपनी पत्नी से प्यार हो गया और वह उसे भगाकर विवाह कर लिया तो उसका स्वभाव बदल गया और मेहनत मजदूरी करके जीवन यापन करने लगा था|
*दशरथ माझी गाँव से शहर शहर से गांव क्यों आया ?
दशरथ मांझी के पिता जमीदार के घर पर मजदूरी करने के लिए भेजा जो दशरथ मांझी को पसंद नहीं था क्योंकि जमीदार उसे नीची जाति कहकर चिढ़ाते रहते और प्रताड़ित करते थे इसलिए दशरथ मांझी गांव छोड़कर शहर गया जब शहर में जात बिरादरी मैं समानता का अधिकार पेपर में पढ़ा तो उसे लगा कि गांव में जात बिरादरी का अब समय समाप्त हो गया और छुआछूत खत्म हो गया इसलिए वह शहर से पुन: गांव आया था |
मेरे बोल:- आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद आप हमें कमेंट करके शेयर करके Gmail करके मेरा उत्साह बढाये जिससे आप सब के बीच बना रहूँ...
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Bahut sundar Prastuti
जवाब देंहटाएंJab tak todenge nhi Tabtak Chhodenge nhi
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपके इस सुझाव से हमें प्रसन्नता हुई है आपके द्वारा हमें मिला फीडबैक हमारे लिए सौभाग्य की बात है....
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